Thursday, April 14, 2005

समन्दर में उतर जाते हैं

समन्दर में उतर जाते हैं जो हैं तैरने वाले
किनारे पर भी डरते हैं तमाशा देखने वाले

जो खुद को बेच देते हैं बहुत अच्छे हैं वे फिर भी
सियासत में कई हैं मुल्क तक को वेचने वाले

गये थे गाँव से लेकर कई चाहत कई सपने
कई फिक्रें लिये लौटे शहर से लौटने वाले

बुराई सोचना है काम काले दिल के लोगों का
भलाई सोचते ही हैं भलाई सोचने वाले

यकीनन झूठ की बस्ती यहाँ आबाद है लेकिन
बहुत से लोग जिन्दा हैं अभी सच बोलने वाले

॥कमलेश भट्ट कमल॥

1 comment:

Unknown said...

Namaskar ji,

Bus kiya kahu aapke rachna padh kar aisa mahsoos hua kiya abhi kuc rah sa gaya hai khali se per bolta hua.

aapke rachna bolti hai aadmi use padthe waqt baat kar sakta.